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ताजा साँसें और चमचमाते दाँत आपके व्यक्तित्व को निखारते हैं ।
दाँतों से आपका आत्मविश्वास भी बढ़ता है ।
हमारे मसूढ़ों और दाँतों के बीच बैक्टीरिया मौजूद होते हैं ।
ये दाँतों को गंदा और साँसों को बदबूदार बना देते हैं ।
यहाँ दिए कुछ आसान नुस्खों की मदद से आप अपने दाँतों को स्वच्छ और साँसों को ताजा रख सकते हैं ।
दाँतों को ठीक से साफ करें ।
दाँतों को ठीक से साफ करने में दो से तीन मिनट का समय लगता है ।
लेकिन ज्यादातर लोग इसके लिए एक मिनट से भी कम समय देते हैं ।
खूब पानी पीएँ ।
मुँह सूखने पर बैक्टीरिया हमला तेज कर देते हैं ।
इससे साँसों से बदबू आने लगती है ।
खूब पानी पीने से न केवल खाने के बचे - खुचे टुकड़े साफ हो जाते हैं , बल्कि लार भी बनती है ।
मुँह साफ रखने में लार की खास भूमिका होती है ।
लार उन बैक्टीरिया को नष्ट करती है जो साँसों में बदबू पैदा करते हैं ।
चबाएँ शुगर रहित चुइंग गम ।
चुइंग गम चबाने से लार बनती है ।
चुइंग गम से दाँतों को साफ रखने में मदद मिलती है ।
शुगर युक्त गम को सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता ।
इसलिए डेंटिस्ट शुगर युक्त गम को खाने की सलाह नहीं देते ।
नियमित रूप से कराएँ दाँतों की जाँच ।
दंतचिकित्सक से दाँतों की जाँच नियमित रूप से कराएँ ।
वे दाँतों की छोटी - मोटी समस्या को आसानी से सुलझा देते हैं ।
खाने के बाद मुँह साफ करें ।
हर बार खाने के बाद पानी से मुँह जरूर साफ करें ।
इससे खाने के बचे हुए टुकड़े साफ हो जाते हैं ।
नींबू और नमक के मिश्रण से दाँत साफ करें ।
एक चम्मच में नमक लेकर उसमें तीन से चार बूंदें नींबू की डाल लें ।
हर हफ्ते इस मिश्रण से दाँतों को साफ करें ।
इससे न केवल दाँत चमचमाने लगते हैं ।
बल्कि साँसों की दुर्गंध से भी छुटकारा मिलता है ।
सेहत है तो सब है ।
आज की व्यस्त जिंदगी में खुद को स्वस्थ रखना किसी चुनौती से कम नहीं ।
लेकिन खान-पान पर ध्यान और जीवनशैली में थोड़ा बदलाव लाकर आप खुद को स्वस्थ रख सकते हैं ।
कम वसायुक्त आहार का करें सेवन ।
खाना वही खाएँ जिसमें कम वसा और फाइबर ज्यादा हो ।
फलों और सब्जियों में ऐसा ही अनुपात रहता है ।
कम वसा और फाइबर वाले खाने से वजन नियंत्रित करने में मदद मिलती है ।
कम वसा और फाइबर वाले खाने से आप कई बीमारियों से भी दूर रहते हैं ।
नमक और शराब का सेवन कम करें ।
ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करने के लिए नमक और शराब का सेवन कम से कम मात्रा में करें ।
बंद करें धूम्रपान ।
धूम्रपान करने से कैंसर समेत कई बीमारियों का खतरा होता है ।
इसे छोड़ने की पूरी कोशिश करें ।
रोज करें व्यायाम ।
अपनी रोज की दिनचर्या में व्यायाम को जरूर शामिल करें ।
नियमित व्यायाम से आप हृदय रोग , कोलन कैंसर , ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी बीमारियों से बचाव कर सकते हैं ।
करते रहें हल्की - फुल्की शारीरिक गतिविधियाँ ।
सीढ़ी चढ़ना , बागवानी , घर के छोटे - मोटे काम या डांस करने जैसी हल्की - फुल्की शारीरिक गतिविधियाँ जरूर करते रहें ।
इनसे शरीर में लचीलापन बना रहता है ।
यदि लगातार बुखार आ रहा है तो उसकी जाँच अवश्य करायें ।
मलेरिया , कालाजार , यक्ष्मा की शुरुआत बुखार से ही होती है ।
गर्मी का मौसम शुरू हो चुका है ।
बासी भोजन व सड़क किनारे बिकने वाले सामान का सेवन नहीं करें ।
बच्चों को फास्ट फूड , कुरकुरे , आइसक्रीम नहीं खिलायें ।
कै-दस्त होने पर नमक और चीनी का घोल या ओ.आर.एस पिलायें ।
साफ पानी अधिक से अधिक पीयें ।
लगातार बुखार से पीड़ित हो ?
कालाजार , मलेरिया या फिर हाई फीवर हो सकता है ।
मेरा बच्चा दस्त और बुखार दोनों पीड़ित है ?
पहले ओ.आर.एस. का घोल पिलायें , इसके बाद बच्चे को किसी शिशु रोग विशेषज्ञ से शीघ्र दिखायें ।
ढाई - तीन वर्षो से हर दो - तीन माह पर फीवर हो जाता है ।
यही नहीं जीभ पर सफेद परत जम जाती है ।
पानी की मात्रा ज्यादा लें और यूरीन कल्चर जाँच करायें ।
कालाजार के प्रारंभिक लक्षण क्या हैं ?RD_PUNC
कुछ दिनों से हल्का फीवर रहता है ।
बुखार की जाँच करें और अन्य जरूरी जाँच के पश्चात ही कालाजार प्रमाणित हो सकता है ।
मेटासिन की गोली देने से बुखार उतर जाता है और फिर 103 तक बुखार चढ़ जाता है ।
एक्सरे , टीसी-डीसी नार्मल है ।
चार - चार घंटे पर फीवर को मापें ।
अगर 100 से ज्यादा फीवर हो तो पैरासीटामोल की गोली दें और किसी औषधि विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श लें ।
एच.आई.वी. क्या है ?
यह कैसे होता है ?RD_PUNC
बचाव के उपाय बताएँ ?
यह एक प्रकार का वायरस होता है ।
इसका फैलाव मुख्यत: असुरक्षित यौन संबंध , संक्रमित सूई , संक्रमित रक्त व माँ से बच्चों में होता है ।
इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती जाती है ।
बोन टीवी की क्या पहचान है तथा इसका क्या इलाज है ?
हड्डियों में दर्द , लगातार बुखार , भले ही यह कम क्यों न हो या बुखार शाम में बढ़ जाये , दर्द के साथ-साथ हड्डियों में विकृति आ जाये तो यह बोन टीबी का लक्षण है ।
इससे हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं और गलने लगती हैं ।
इस परिस्थिति में लकवा भी मार सकता है ।
इसकी जाँच के लिए डिजिटल एक्सरे , एम.आर.आई. करायें , टीबी की दवा एक वर्ष तक लें एवं विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श लें ।
रात में सोते समय शरीर पर एक चादर जरूर रखे एवं पंखा कम से कम चलायें ।
इससे अगर अपने आप सही महसूस नहीं करते हैं तो एन्टीएलर्जिक टेबलेट दस दिनों तक लें ।
बच्चों को घमौंरी हो रही है क्या करें ?
डायरिया का घरेलू उपचार क्या है ?
एक गिलास पानी में दो चम्मच चीनी एवं एक चुटकी नमक डालकर उबालकर दें ।
धूप के कारण क्या कालाजार रोग होता है ?
क्या गर्मी में इसका प्रकोप बढ़ जाता है ?
कालाजार बालू मक्खी के काटने से होता है ।
इसका उपचार सभी अस्पतालों में है ।
इसके लिए अब टेबलेट भी उपलब्ध हैं ।
किसी बच्चे को कुकुर खाँसी हो जाये तो क्या करना चाहिये ?
बच्चे को डीपीटी का टीका लगायें ।
किसी विशेषज्ञ चिकित्सक से दिखायें तथा खाँसी के लिए बलगम की जाँच करायें ।
अपनी आँखों की देखभाल को लेकर आप कितने जागरूक हैं ?
हर छह माह में करें आँखों की जाँच ।
चश्मे या कांटैक्ट लेंस का रखरखाव करें ।
नियमित आँखें धोना ।
लेकिन इन सबके साथ अगर आप अपने खान -|RD_PUNC पान पर थोड़ा सा ध्यान दें ।
तो न सिर्फ आपकी आँखों की रोशनी बेहतर हो सकती है ।
लेकिन 12 - 15 सीटों वाला यह टिवन ओटर प्लेन मालदीव जैसे आर्कीपेलेगो ( द्वीप समूह ) को घूमने के लिए निर्विवाद रूप से श्रेष्ठ है ।
पानी की सतह पर स्पीड बोट की तरह दौड़ते हुए यह कब हवा में उठ जाता है , पता नहीं चलता ।
पूरी उड़ान में आपको आम हवाई जहाजों की उड़ान का अनुभव नहीं होता ।
हर वक्त आपकी निगाहें खिड़की से नीचे को ताकती रहती हैं - मालदीव के अलग-अलग शेड्स के नीले पानी में रिजॉर्ट द्वीपों व कोरल द्वीपों को निहारते हुए ।
सब कुछ कितना साफ दिखता है ।
मालदीव में दो ही सी प्लेन कंपनियाँ हैं ।
ट्राँस मालदीवियन इन्हीं में से एक है जिसके पास बीस सी प्लेन है ।
आप चाहें तो लगभग चार हजार रुपये ( प्रति व्यक्ति ) में घंटेभर की हवाई सैर कर सकते हैं या फिर पूरा सी प्लेन अपनी दिनभर की तफरीह के लिए किराये पर ले सकते हैं ( बशर्ते जेब गहरी हो ) ।
वैसे अगर आप माले द्वीप से परे किसी द्वीप पर जाएँ तो सी प्लेन का सफर जरूरी होगा क्योंकि विभिन्न द्वीपों के बीच सफर का यही जरिया है ।
और वो एक ऐसा सफर होता है जिसके खत्म होने का मन शायद आपका कभी न करे ।
सी प्लेन 12 किलोमीटर से लेकर 183 किलोमीटर ( उत्तम में मावीलेवारू ) तक का सफर मालदीव के द्वीपों में करते हैं ।
हम माले के अहमदी बाजार में राजधानी की सबसे बड़ी एंटीक व सोवेनियर दुकान में थे ।
सारे सेल्समैन मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद द्वारा एक दिन पहले कोपेनहेगन में विश्व जलवायु सम्मेलन में दिए गए भाषण को बड़े ध्यान से सुन रहे थे ।
ईमानदारी से कहूँ तो मैंने किसी हिंदुस्तानी को राष्ट्रपतियों या प्रधानमंत्री के भाषणों को इतने ध्यान से सुनते नहीं देखा ।
लेकिन जब इस धरती की एक नायाब रचना के अस्तित्त्व का ही सवाल हो तो , इतनी गंभीरता लाजिमी ही थी ।
कई लोगों ने अक्टूबर में मालदीव की कैबिनेट द्वारा पानी के अंदर की गई बैठक को भले ही टोटका समझा हो , लेकिन मालदीव जाकर लगता है कि अगर प्रकृति का कोप इसे हमसे छीन ले तो दुनिया कितनी दरिद्र हो जाएगी ।
वहाँ की सुंदरता में कुछ ऐसा ही खास है ।
उस छोटे से देश में मानो इतनी खूबसूरती समाती नहीं ।
बाजार की उस सैर से वापस अपने क्रूज पर जाने के लिए जेट्टी की तरफ लौटते हुए , जब निगाहें बरबस सड़क के साथ-साथ चलते समंदर के पानी में गई तो अहसास हुआ कि यहाँ के लोग इस खूबसूरती की कीमत किस हद तक समझते हैं ।
पानी इतना साफ था कि लैंपपोस्ट की रोशनी में नीचे कई मीटर गहराई में तैरती मछलियाँ अपने सारे रंगों के साथ दिखाई दे रही थीं ।
यह समंदर का वो हिस्सा था जो शहर से एकदम सटा हुआ था ।
आप भारत के किसी शहर से सटे हुए समुद्र या नदी के पानी में कुछ सेंटीमीटर भी साफ देख सकें तो खुद को खुशकिस्मत पाएँगे ।
एमवी एक्वामैरिन पर लौटते हुए माले में बिताए हुए शाम के दो घंटे जेहन में घूम रहे थे ।
कोरल रीफ ( मूँगा चट्टानें ) यहाँ का जीवन हैं ।
यहाँ तक की आपको कब्रों पर लगे पत्थरों पर भी मूँगा चट्टानें मिल जाएँगी ।
राष्ट्रपति नाशीद का भाषण सुनने के कुछ देर पहले हम उनके सरकारी आवास के बाहर खड़े थे ।
यकीन नहीं होता था कि हम किसी देश की सर्वोच्च शख्सियत के आवास के आगे थे , दूर-दूर तक कोई सुरक्षाकर्मी नहीं था ।
मजे से हम उसके बंगले के दरवाजे से अंदर हाथ बढ़ाकर महज पचास मीटर दूर बगीचे व बरामदे के फोटो खींच रहे थे ।
क्या आप भारत में किसी अदने से नेता के घर के बारे में ऐसा सोच सकते हैं ?
पता तो यह भी चला कि राष्ट्रपति कभी - कभार पैदल ही सड़कें पार करते हुए दो ब्लॉक आगे अपने दफ्तर में पहुँच जाते हैं ।
मालदीव के बारे में हर बात अभिभूत करने वाली थी ।
इसीलिए मुझे अगले दिन का बेसब्री से इंतजार था ।
इल्हाम था कि वह दिन खास होने वाला था ।
सवेरे क्रूज से एक नाव हमें एयरपोर्ट आईलैंड लेकर आई ।
वहाँ से हम रनवे का चक्कर काटते हुए पहुँचे ट्राँस मालदीवियन के बेस पर ।
पिछली शाम जब क्रूज माले के निकट पहुँच रहा था तो हमने ऊपर से गुजर रहे सी प्लेन को तुरंत पहचान लिया ।
इतनी तस्वीरें जो देखी थी , उसकी ।
लेकिन तब गुमान न था कि अगले दिन उसमें सवारी का मौका मिलेगा ।
ट्रॉस मालदीवियन के सी प्लेन से हम एक सौ पाँच किमी दूर रंगाली द्वीप जाने वाले थे ।
लगभग हजार मीटर की ऊँचाई तक उड़ने वाले सी प्लेन से मालदीव के समुद्र में फैले पड़े सैकड़ों रिजॉर्ट व कोरल द्वीपों को देखना अविस्मरणीय था ।
पानी की यह खूबसूरती कहीं और नहीं मिलेगी ।
रोमांच व उत्साह से साँसें थाम देने वाली उड़ान थी वह ।
लेकिन रंगाली द्वीप पर हिल्टन होटल्स के कोनराड रिजॉर्ट पहुँचकर लगा मानो हम किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गए हों ।
ऐसी दुनिया में , जिसका बाहर की किसी दुनिया से कोई वास्ता नहीं था ।
वास्ता इस तरह भी नहीं था कि वहाँ जैसी खूबसूरती या विलासिता बाहर मिलना मुश्किल था ।
कोनराड पर सैर पैदल भी हो सकती है या बैटरी चालित गाड़ी से भी ।
जेट्टी से मुख्य द्वीप तक जाते हुए पुल के दोनों ओर जलजीवन का नजारा अद्भुत था ।
अभी हम आस-पास की प्रकृति से खुद को सहज भी नहीं कर पाए थे , कि ऐसी जगह पहुँच गए , अकल्पनीय थी ।
सीढ़ियों से कई मीटर नीचे समुद्र के पानी में उतरते हुए हम शीशे के ऐसे कमरे में पहुँच गए जो पानी के अंदर था ।
वह कमरा दरअसल एक डाइनिंग रूम था ।
सब तरफ शीशों के पार हम विलक्षण किस्म की छोटी - बड़ी मछलियाँ , कोरल्स , स्नोर्कलिंग व स्कूबा डाइविंग करते हुए इंसान देख सकते थे ।
वहाँ सजी मेजों पर बैठकर खाने की कल्पना ही अपने आप में बेहद रोमांचित कर देने वाली थी ।
माले से सी प्लेन में इस द्वीप पर आकर इसे देखने और अंडरवाटर लंच करने का किराया ही एक आदमी के लिए 47 हजार रुपये है ।
वहाँ से लौटने का मन न था ।
हम लोग अपने पासपोर्ट पानी में बहा देने को तैयार थे ।
लेकिन जानते थे , यह मुमकिन नहीं था ।
भारी मन से इसी उम्मीद के साथ लौट पड़े कि फिर कभी , किसी मोड़ पर तकदीर यहाँ जरूर ले आएगी ।
कई दिनों से दिल्ली से बाहर जाने की योजना बना रहे थे लेकिन काम की व्यस्तता के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा था ।
बचपन से वाइल्ड लाइफ का शौक था तो सोचा कि क्यों न इस बार जिम कार्बेट जाया जाए ।
2006 में लद्दाख में खारदूंगला पास से आगे पेगोंग लेक तक की बाइकिंग के बाद यह दूसरा बाइक टूर था ।
27 दिसंबर की तड़के हम दिल्ली से जिम कार्बेट के लिए रवाना हुए , लेकिन जिस जोशखरोश से निकले थे कोहरे ने हमारी रफ्तार रफूचक्कर कर दी ।
हापुड़ से गजरौला के बीच का सफर वाकई थकाऊ था ।
ऊपर से कोहरा और सामने खराब सड़क ।
कई बार तो लगा कि अब गिरे ।
किसी तरह सुबह 8 बजे गजरौला पहुँचे ।
खैर हम 12 बजे रामनगर पहुँच गए ।
कार्बेट पार्क रामनगर से 20 किलोमीटर आगे है ।
हमारा रिजॉर्ट पार्क के नजदीक ढिकुली में था , जिसकी बुकिंग हमने पहले ही करवा दी थी ।
उस दिन कुछ खास कार्यक्रम था नहीं हम ठंड होने के बावजूद पहले कोसी के किनारे घूमने गए ।
दो - तीन घंटे वहाँ बिताने के बाद हम कार्बेट म्यूजियम निकल गए , जो बड़ी मुश्किल 2 किमी दूर धांगड़ी गेट के नजदीक था ।
वहाँ से हम नीचे रामनगर घूमने चले गए ।
लौटते देर शाम हो गई ।
दिल्ली से ठान कर निकला था कि जंगल में छुट्टा घूमता शेर जरूर देखूँगा तो पूरी रात सपने में मुझे शेर दिखाई देते रहे ।
रात की गहराइयों के बीच अचानक मुझे जबरदस्त दहाड़ सुनाई दी और उसके बाद तो जो कुत्तों ने भौंकना शुरू किया तो दो घंटे तक थमे नहीं ।
लिहाजा पहले कालाढुंगी और कार्बेट फॉल घूमने का सुझाव आया ।
कालाढुंगी तीस किमी दूर है , जबकि कार्बेट फॉल रास्ते में पड़ता है ।
कालाढुंगी में जिम कार्बेट साहब का म्यूजियम है , जहाँ उनकी निजी जिंदगी से जुड़ी कुछ अहम चीजें रखी हैं ।
लौटते-लौटते साढ़े बारह बज गए ।
कालाढुंगी बेहद खूबसूरत जगह है , जिम कार्बेट इसी गाँब में आकर बसे थे ।
रिजॉर्ट पहुँचने पर सफारी जिप्सी हमारा इंतजार कर रही थी ।
बताया गया कि उन्होंने वहाँ की नंबर एक साइट बिजरानी में साइटिंग की व्यवस्था कराई है ।
नंबर एक के बारे में पूछने पर बताया कि वहाँ ग्रासलैंड ज्यादा है और टाइगर इस दौरान ठंड से बचने के लिए उसी तरफ आते हैं ।
बिजरानी पहुँचते ही हमें एक गाइड दिया गया , जो चार घंटे घुमाने के ढाई सौ रुपये लेता है ।
हम अंदर जंगल के लिए रवाना हो गए ।
हमने वहाँ कई तरह के जानवर और हिरनों की कई प्रजातियाँ देखीं ।
अंदर हमने दो टस्कर हाथी देखे , जिनके लंबे-लंबे दाँत थे ।
मैंने जमकर फोटोग्राफी की ।
इस बीच गाइड ने टाइगर को ट्रैक करना शुरू कर दिया ।
गाइड ने बताया कि पार्क में तकरीबन 150 के आस-पास ही टाइगर हैं , जिनमें से हाल ही में कुछ मर चुके हैं ।
कई जगह हमें उनके पंजों के निशान भी दिखे , लेकिन टाइगर का दर्शन न मिलने से मैं उदास था ।
तीसरे दिन हमें दिल्ली लौटना था ।
मेरे दिमाग में तो टाइगर का फितूर सवार था ।
तभी मुझे हल्द्वानी के अपने एक पुराने मित्र की याद आई ।
मैंने उसे ऐसे ही फोन लगा दिया ।
मैंने उसे बताया कि मैं कार्बेट आया हुआ हूँ ।
उसने पूछा टाइगर देखा या नहीं ।
उसके यह शब्द तीर की तरह चुभ गए ।
मैंने धीरे से कहा , नहीं ।
पार्क में बाइक ले जाने की अनुमति नहीं थी ।
हमें किसी ने सलाह दी कि आप अंदर के लिए सफारी ले लो ।